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आ नो॒ ब्रह्मा॑णि मरुतः समन्यवो न॒रां न शंसः॒ सव॑नानि गन्तन। अश्वा॑मिव पिप्यत धे॒नुमूध॑नि॒ कर्ता॒ धियं॑ जरि॒त्रे वाज॑पेशसम्॥

English Transliteration

ā no brahmāṇi marutaḥ samanyavo narāṁ na śaṁsaḥ savanāni gantana | aśvām iva pipyata dhenum ūdhani kartā dhiyaṁ jaritre vājapeśasam ||

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Pad Path

आ। नः॒। ब्रह्मा॑णि। म॒रु॒तः॒। स॒ऽम॒न्य॒वः॒। न॒राम्। न। शंसः॑। सव॑नानि। ग॒न्त॒न॒। अश्वा॑म्ऽइव। पि॒प्य॒त॒। धे॒नुम्। ऊध॑नि। कर्ता॑। धिय॑म्। ज॒रि॒त्रे। वाज॑ऽपेशसम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:34» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (समन्यवः) क्रोध से युक्त (मरुतः) मनुष्यो ! तुम (नः) हम लोगों के लिये (ब्रह्माणि) धनों को (कर्त्त) सिद्ध करो (अश्वामिव) घोड़ी के समान (ऊधनि) रात्रि में (धेनुम्) वाणी को (पिप्यत) प्राप्त होओ (नराम्) मनुष्यों की (न) जैसे (शंसः) स्तुति वैसे (सवनानि) ऐश्वर्यों को (आ,गन्तन) प्राप्त होओ (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिये (वाजपेशसम्) विज्ञान का जिसमें रूप विद्यमान उस (धियम्) उत्तम बुद्धि को सिद्ध करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य मनुष्यस्वभाव से उत्पन्न हुई प्रशंसा को प्राप्त होके उत्तम विद्या, वाणी और उत्तम बुद्धि को बढ़ाकर सर्वमनुष्यों को सुखों से अलंकृत करें, वे सुखी होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे समन्यवो मरुतो यूयं नो ब्रह्माणि कर्त्ताऽश्वामिवोधनि धेनुं पिप्यत नरान्न शंसः सवनान्यागन्तन जरित्रे वाजपेशसं धियं कुरुत ॥६॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (ब्रह्माणि) धनानि (मरुतः) मनुष्याः (समन्यवः) सक्रोधाः (नराम्) मनुष्याणाम् (न) इव (शंसः) स्तुतिः (सवनानि) ऐश्वर्याणि (गन्तन) (अश्वामिव) बडवामिव (पिप्यत) प्राप्नुत (धेनुम्) वाणीम् (ऊधनि) रात्रौ (कर्त्त) कुरुत। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (धियम्) प्रज्ञाम् (जरित्रे) स्तावकाय (वाजपेशसम्) वाजस्य विज्ञानस्य पेशो रूपं यस्यान्ताम् ॥६॥
Connotation: - अत्र द्वावुपमालङ्कारौ। ये मनुष्या मनुष्यस्वभावजां प्रशंसां प्राप्य सुविधां वाचं प्रज्ञां च वर्द्धयित्वा सर्वान्सुखैरलं कुर्वन्तु ते सुखिनो जायन्ते ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात दोन उपमालंकार आहेत. जी माणसे प्रशंसायुक्त बनून विद्या, वाणी, उत्तम बुद्धी वाढवितात ती सर्व माणसांना सुखी करतात व सुखी होतात. ॥ ६ ॥